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http://localhost:8080/xmlui/handle/123456789/1735
Title: | श्री वलवान चरित्रे |
Authors: | विठ्ठल बिडकर |
Issue Date: | 1897 |
Publisher: | खंडेराव भिकाजी बेलसरे |
Abstract: | प्रेपें नाढत्रिहूठें आम्राच्या ही नुक्तीं अगर नन्र्कि अर्दून लाड हेंर्ये, रसिका णिरीं त्रढावैहेद्रे, वैत्रो वदूंचळोनये छुक्को फळी, पा'रॅमळीं द्प्हृळी दिशा कीं गुर्णी व्या'पू लागख्रि, मागची टझ्टपीं प्तदृड्रऽऽशां मंनिव्गां आंगौ मरूनों द्रुणीं ॥ १ तशा प्तफळ्शां होऊं घडों ठेंपद्र्गे डोंर्जू हा हा लामछि सौख्पपंद्र्फ्व्निं सौंमाग्यत्रत्ता भली । ! र्तोत्र विळोऋशून्प विर्चिर्ते कैंप्तऱ पर्वीर्फेक्रला माधुवेंक्त्रनिघान कोमल छते! हाणानगाला तुला । ।। २ |
Description: | गेंन फांतपारेट्त्तनरँनन याला शुटांतरैळो’ट्ळोभिरकँ’क्षि परोंफ्मुक्तप् ॥ ५ ० था। कस्प सांनतपझे क्रुपितहें च्ड्यांलै२ ड्यालोंतेकॅच्चकिपँरौ प्नणिफ्ह्म ग्रूपगू| देवाऽङ्मयंशाक्लिप्ऽग्यक्रुर्तागसंगां संळक्ष्पते स्वगुव्मींक्षन एक नान्यम् ।। ५१ साग्ज्तिन काँट्वेंनामळिनवेद्केन भृहुगे कि बसून फिल दोळिचँतेंक्विदृचि: । सत्यमस्ति कथिर्वं विहैहँर्थ तु किंवा जींवमिपं द्विनयमेव कवि: सुना च ।। ५२ थाकएग्रँ क्'ग्चुक्लिरस्य नवा क्षितौठ्म् आसाँत्सा संरँफॉंदे यथा श्या’मेन्नममाँ । संगोंप्य षिल्इणकौक्भ्ररितेक्षणाय मूफेऽळंपँद्प् शाक्विनिळुपं जपान ।। ५३ विद्वप्नपि मिंयनपां स तु चळाहृनप्क्वैभ् कॅद्पँकँकिछुपिकैंमथ राजमुपाँम् । पुष्पेपुंवैण्यावेघुरोकूक्कतिफांयभ् कग्षी मसाद्यत्रि चंद्र्कलां यथेष्ट'प् ।। |
URI: | http://localhost:8080/xmlui/handle/123456789/1735 |
Appears in Collections: | Dattu Waman Poddar |
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