Please use this identifier to cite or link to this item:
http://localhost:8080/xmlui/handle/123456789/1679
Full metadata record
DC Field | Value | Language |
---|---|---|
dc.contributor.author | महादव गंगाधर भट्ट बाक्र | - |
dc.date.accessioned | 2024-07-06T06:18:07Z | - |
dc.date.available | 2024-07-06T06:18:07Z | - |
dc.date.issued | 1915 | - |
dc.identifier.uri | http://localhost:8080/xmlui/handle/123456789/1679 | - |
dc.description.abstract | तत्रमह्याराल्तंनामकींस्वपाण्डवानळामितिद्द्यसड्ल्यतिरोंद्दिवंभर्क्सवास्तव्यस्यजनस्यतथापितत्र या विढूङ् विद्वझुरुपसाघारण्येन 'ळारिदूदयमळानाऽनितऱसाघळाऱणगोंरक्घळी: सा न कैक्कमितिहासत्वपुल्लारेण विंब्रु परमपावनमगक्त- दाश्रिक्कानचरितामृतवर्णेनयुस्वेन परमासैन महृर्षिणा व्यासेन प्रतिपादितचच्चाक्विपुरुपार्थेसाघनोपायविपयकल्वेनेति तस्य फाररुंन्येंन यथार्थेज्ञानस्य महाफ्ब्दतया सर्वोपेक्षितत्वात्परमकारुणिका: पूर्वे विद्वप्सल्तद्यथाप्रझं व्याचरझुं: । तामु व्याख्यासु कतिचन टीकान्त्तरेपु कचितेग्नचिदंद्देप्नाकूग्माना: कट्रॅनामप्राइं निर्दिष्टप्: श्रुट्टान्ते यथान्नैव च त्रिरोंघाथेभट्त्तन्या (अ. ३सो. ९८)‘ इतिजनाद्वैनटीका’ इति । एर्वद्रुवैटाथेंप्रकाशिंज्यां (अ… १७सो ११)‘ इतिओ वशंपग्यनव्याख्या नोचिता’ड्तिग्जद्मालायल्वेर्चिङकष्ठीर्को चया: कतिपया विरळतरमंशत उपळायन्तेताअपि प्राचीनपुस्तकानां जीणेंतया, 'ळिखवैन तद्गुद्धरणे प्रघुत्तिविमुखतया च जनल्यासन्नविनाशा ळक्ष्यन्ते । | en_US |
dc.publisher | मिणलाल इच्छाराम दसाई, मंबई | en_US |
dc.subject | श्रीमन्महाभारतम िवराट | en_US |
dc.title | श्रीमन्महाभारतम िवराट पवर् ४ | en_US |
dc.type | Book | en_US |
Appears in Collections: | Dattu Waman Poddar |
Files in This Item:
File | Description | Size | Format | |
---|---|---|---|---|
०५-७११९-श्रीमन्महाभारताम विराटपर्व ४.pdf | 295.5 MB | Adobe PDF | View/Open |
Items in DSpace are protected by copyright, with all rights reserved, unless otherwise indicated.