Skip navigation

Please use this identifier to cite or link to this item: http://localhost:8080/xmlui/handle/123456789/1051
Title: जयवंशमहाकाव्यम्
Authors: श्रीसीतारामकिव
Issue Date: 1952
Publisher: राजपुताना िव􀄵िवद्यालय, कलक􀂰ा
Abstract: संस्कृत साख्यि हमारे देश्ण् को प्ऎरँन्ष्यक्कांभिंहैं ब्र्जिसकळी"'’,/ अगाघताकैसाबन्घ मेंसम्पूर्णे विश्व निचिंवप्दहै|हूंजारोंस्पाँफी विंस्नृतसौमाओंकोपारफातेहुपृझ्खेंअनेक युगशासनअत्रैर साम्राज्य देखने को मिले हैंएर्व हमारे देशकीं सांस्कृतिक भौर साहित्यिञ्च प्रदृत्तियाँकायइसद्प्सेहीजन्म-द्म्बाऱह्रप्हैप्झ्सकैसत्प,च्चिरहिंसा, शान्तिआदिमैंत्तिक्त्रवत्त्व सॅसारकोसदासेहींप्रमावित कातेरहेहैं सौर इसी कै क्काम्च पर हमारे देश कों"‘जगद्गुरु" यष्द्दजानै का गौरव प्राप्तहुश्राहैं|ज्ञानविक्काकींअतेक्रघाराओंपरइप्तकेअट्वेंकउपासफॉं नेप्रक्यशङग्ला हैं,दृसोत्तिए शाश्वत संघपाँफा सामनाफातेहुपृ मी ड्सेश्नाजतक अमरत्त्व माप्तहेंप्यत्ग्रेकराष्ट्रफे नैतिक शिक्षणाजय आज भळीइसकीअळोर महप्नू आशाआँकेसाथ निर्निमेष दृष्टिसेताक इहेहैं|हमरिदेशकीसंस्क्रुतिफातों यहृकैन्द्र-यिन्द्रुदैही । भारत कैस्दणिमयुगसेड्सका अटूट सम्यन्घल्हाहेंएर्वआजभळीराष्ट्रकै ढ्याप्न-विशैपत्त: सांस्कृतिक तथा वैदिक दिकासकै लिणुड्सकोङप- योक्सिपइलैसेंकर्दीअपिकवइगईंहै!
URI: http://localhost:8080/xmlui/handle/123456789/1051
Appears in Collections:Dattu Waman Poddar

Files in This Item:
File Description SizeFormat 
PNVM-5-00945-Jay Vansham Mahakavyam By Sitaramkavi.OCR.pdf48.89 MBAdobe PDFView/Open


Items in DSpace are protected by copyright, with all rights reserved, unless otherwise indicated.